कानून से पहले जनता का इन्साफ के नाम पर हिंसा सही या एक नए अपराध का नमूना ?

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Kanhaiya
कानून से पहले कोर्ट में सजा देना , एक अन्य अपराध का जन्म या सही ?

 

यह सर्वविदित है की जे ऍन यू में AISF  के तत्वाधन में पहले  एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है और फिर कॉलेज के उप कुलपति आयोजन को दी गयी मंजूरी को कैंसिल कर देते हैं हालाँकि इसके बावजूद कार्यक्रम आयोजित होता है और उसके बाद न सिर्फ देशद्रोही नारे लगाये जाते हैं अपितु आम भारतीय के सहनशीलता को चुनौती देते भी नजर आते हैं ? ” भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह ” , ” भारत तेरे बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी ” , ” अफज़ल हम शर्मिंदा हैं , तेरे कातिल अब तक जिंदा हैं ” , ” तुम कितने अफज़ल मारोगे , हर घर से अफज़ल निकलेगा ” , ” कश्मीर , पंजाब से हम आज़ादी ले कर रहेंगे ” और भी न जाने दसियों – बीस ऐसे नारे लगे होंगे और अपने आप में दुखद और एक देशभक्त भारतीय के लिए नाकाबिले बर्दास्त होगा अपितु खून खौलना भी लाजिमी है | फिर गिरफ्तारियां हुईं , कनैह्या कुमार को जेल हुआ , उम्र खालिद जैसे अन्य फरार हो गए या कहें गायब हो गए ? सब कुछ भारतीय क़ानून के हिसाब से सही चल रहा था , देशद्रोह का आरोप तय हुआ ( Sedition Charge) . दिल्ली पुलिस को सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश पहले ही दे दिया की कोर्ट परिशर में सुरक्षा के पुख्ता इन्तेजाम को सुनिश्चित करें क्योकि कनैह्या पर हमला की पूर्ण आशंका है , मामला संगीन था लिहाजा हमला होने के पूर्व अंदेशा से किसी को भी इनकार नहीं होगा | ज्ञात हो इसके पहले भी कई मामलों में इस तरह से होता आया है उदाहरण के तौर पर निर्भया काण्ड को ही ले लें आरोपी की कचहरी परिसर में ही जैम कर कुटाई हुई थी | और दुर्भाग्यवश कन्हैया के भी पेशी में पुलिस से चूक हुई और कन्हैया को वकील रुपी स्वघोषित जजों ने अपना पूरा जोर कन्हैया के ऊपर लगा दिया | बात यहाँ कन्हैया का पक्ष लेने या कन्हैया के विचार का समर्थन करने की नहीं कर रहा हूँ , यह सत्य है की वो कथित तौर पर अपराधी है , अभी कुछ साबित नहीं हुआ है | मगर इस तरह के हमले से क्या साबित कर रहे हैं हम लोग | क्या यह अपराध नहीं की कानून के फैसले से पहले हम स्वयं जज बन जाए और बिना किसी कोर्ट ट्रायल के अभ्युक्त को पहले ही सजा दे दें | यह आम जनता नही थी जो ” मुन्ना भाई ऍम बी बी एस के शुरूआती दृश्य में एक बटुआ छोर को अपने हवाले करने को कहती है और सुनील दत्त पॉकेटमार को कहते हैं कर दूं तुम्हे इनके हवाले कोई बीवी से झगरा कर के आया है , कोई अपने सैलरी न मिलने से नाराज है और कोई अपने नीजी जीवन में सुखी नहीं है , यहाँ ऐसा कुछ नहीं था यहाँ हमलावर वकील थे | वो वकील जो जुबानी लड़ाई करते हैं , जुबान से और तथ्य से हमला करते हैं किसी को शारीरिक क्षति नहीं पहुचाते हैं , परन्तु सब व्यवस्था डेल्ही पुलिस के धरे के धरे रह गए और एक अभ्युक्त को इतना मारा गया की उसके टीशर्ट फट गए , उसकी पैन्ट उतर गयी , चप्पल भीड़ में कहीं खो गयी | इस के लिए कौन जिम्मेदार है ? किसने यह अधिकार वकीलों को दिया ? क्या क़ानून से ऊपर हैं यह वकील ? क्या कोर्ट से पहले सजा देना न्यायोचित है ? क्या एक अभ्युक्त जिस पर आरोप कोर्ट ने नहीं तय किया है उसपर पहले ही सभी आर्रोपों के दोषी मानकर हत्या का प्रयाश करना सही है ? यह दसियों सवाल  आपके मन में उठना चाहिए | अगर नहीं उठ रहा है तो आपके सवेंदनशीलता में शिथिलता आ गयी है ? चुकी अभी एक भी सबूत कनैह्या के खिलाफ देखने को नहीं मिला है जिसमे वो नारा लगा रहा हो या कुछ गलत बयानबाज़ी कर रहा हो और वो कल को अगर दोषमुक्त साबित हो जाए तो उन वकीलों को कोई सजा देगा या कन्हैया जैसा शक्श जो अभी तक भातीय न्याय प्रक्रिया पर विश्वाश की बात करता है वो कल को वाकई न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठाए यह लाजिमी है ? जरूरत है उसे अपने बचाव में हर संभव प्रयाश करने देने का ताकि हम कल को उसे कह सकें अफज़ल को फांसी इसी न्याय प्रक्रिया के तहत हुई थी जो सत्य और असत्य के भेद को समझते हुए सही फैसला सुनाता है | ऐसा इसलिए करना होगा क्योकि कन्हैया आज के तारीख में कई जे ऍन यू के छात्रों की आवाज बन चूका है |

Kumar Satyam
सत्यम

 

नोट : उपरोक्त सभी विचार लेखक के निजी विचार हैं , इस लेख से Shoutmyvoice.com का कोई लेना देना नहीं है |

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